आज फिर से एक बार, आईना जरूर देखना,
अपने को नहीं पावोगी,अपने प्यार को देखना,
शरमा जवोगी अपनी ख़ूबसूरती को देखकर,
मुझे चाहोगी मिलना फिर से आईना देखकर,
अपनी जुल्फों पर हाथ फेरोगी, जब कभी भी,
बादलों की घनघोर घटा जो चारों ओर देखना,
चलोगी जब भी कभी भी, तुम बागों में कहीं,
साया मेरा भी तेरे साथ साथ होगा बस देखना,
यूं प्यार की चर्चा कहीं भी, कभी भी करे कोई,
हमारे प्यार की मिसाल दी जाएगी, वो देखना,
आज फिर से एक बार, आईना जरूर देखना!
🖋️सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 🙏
आपकी कविता पढ़कर दिल को गहराई से छूने वाला अनुभव हुआ। आपकी लेखनी में भावनाओं की जो गहराई और शब्दों की सरलता है, वह अद्वितीय है। हर पंक्ति में ऐसा लगा मानो भावनाओं का एक नया संसार खुल रहा हो।
आपने जिस खूबसूरती से विचारों को संजोया है, वह दिल को छू जाने वाला है। शब्दों का चयन और उनमें पिरोई गई संवेदनाएँ मन को बेहद प्रभावित करती हैं। आपकी कविता ने न सिर्फ सोचने पर मजबूर किया, बल्कि आत्मा को एक सुकून भी दिया।
इस अद्भुत रचना के लिए आपको ढेरों बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ। आपके लेखन में हमेशा यही सृजनात्मकता बनी रहे!
हार्दिक आभार