उसने अपनी झील सी आंखों से क्या खूब जादू किया है,
न कोई धागा न बंधन, बस अपने प्यार से बांध लिया है!
सुबह से शाम तक एक ही चाहत, दीदार हो बस उसका,
न जाने क्या नशा उसकी खुबसूरत अदाओं ने किया है!
पीने को बैठे तो नशा का असर भी नहीं हो रहा प्रताप,
उसकी झील सी गहरी आंखों का नशे यूं छाया हुआ है!
कौन कहता है शराब नशा की वो सबसे पहली पसंद है,
शायद उसने कभी किसी झील सी आंखों से पी नहीं है!
गम भुलाने को तो यूं हर कोई पी लेता है शराब प्रताप,
झील सी आंखों से हो जिसे प्यार, तो गम कोसों दूर है!
🖋️सूर्य प्रताप राव रेपल्ली🙏