दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है
अपनी कलम से,
हो सोच अगर अच्छी, तो सब खुबसूरत नज़र आता है,
है नज़रिया भी अच्छा, सब कुछ अच्छा नज़र आता है!
है देखा मैने ज़माने में पल भर में बदलते हुए लोगों को,
वरना गर पानी हो साफ़, चेहरा भी नज़र आ जाता है!
कौन ले जायेगा, जो तेरे मुकद्दर में लिखा है प्रताप,
होता वही है, जो किसी के नसीब में लिखा होता है!
माना के वो रखता है रसूख, कुछ भी गलत करने में,
होगा वो सब कुछ, इस जहां का कोई खुदा तो नहीं है!
माना के मुश्किलों का दौर, चल रहा है जीवन में है तेरे,
ये दौर मुश्किलों का यूं, तेरे जीवन में स्थाई भी नहीं है!
🖋️सूर्य प्रताप राव रेपल्ली🙏