जिसकी उंगली पकड़ मैं चलना सीखा वो मां है,
स्वर्ग है जिसके क़दमों के तले,सच है, वो मां है,
नहीं थकती सदा चलती फिरती रहती,वो मां है,
मुश्किलों में भी जो मुस्कुराती सच है वो मां है,
भूखी रहकर अपनी रोटी बाटें सबमें वो मां है,
लगे चोट रोऊं मैं गले लग,दर्द जिसे हो वो मां है,
मैंने तो दुनियां है देखी, पर मेरी दुनियां वो मां है,
रिश्ते नाते होते हुए भी, फरिश्ता है जो,वो मां है,
कोई कहे चल जन्नत देखें, मेरी जन्नत वो मां है,
सपने देख मैं खुश होता, दुआ जो करे वो मां है,
सब पाकर खाली जो लगा, खोया मैने वो मां है,
फिर जनम मुझे मिले जग में चाहूं फिर,वो मां है!
🖋️सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 🙏