आजकल की शादियां, यूं हो गई फास्ट फूड की दुकान,
ठेले जैसी निभाते रिश्ते, आज ये तो कल दूसरी दुकान!
ये आजकल की शादियां सरकार के नोटों जैसी हो गई,
आज साथ है चल रहा,न ख़बर के दिल से बाहर हो गई!
न होती थी पहले यूं शादी,जब तक न मिलते कुंडलियां,
आज कल तो होती है,आधार उसकी नौकरी,संपत्तियां!
न देख पाते दोनों एक दूजे को,जब तक न फेरे हो जाते,
आजकल तो शादी बाद में,बैंकाक,थाइलैंड हैं घूम आते!
न परिवार वालों की है कोई चिंता,न उन्हें डर समाज का,
जब तक चले साथ चले नहीं तो नोटिस बस तलाक का!
पहले तो पति का नाम न ले, बस सुनो जी थी पुकारती,
अब तो ऐसे नाम वो लेती, पप्पू, चूचू, जानू है पुकारती!
होती थीं जब गांवों में शादी, होते थे काफी रस्म रिवाज,
आजकल की शादियां,दो गवाह बस वो हो गए आजाद!
पहले होती थी शर्म,दिल में होता था सम्मान समाज का,
अब न कोई ऐसा बंधन, न इन्हें ज़रूरत घर समाज का,
है अब कोई कुछ भी सोचे, हमनें कोर्ट मैरिज कर डाला!
है कहता मानो अपना या नहीं तो कल दूसरी गली चला!
सोच ऐसी आज साथ बाहों में,कल की चिंता नहीं यारों,
कल की कल देखेंगे, क्यूं इन उलझनों में रहे हम यारों!
🖋️सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 🙏