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दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है
दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है अपनी कलम से, हो सोच अगर अच्छी, तो सब खुबसूरत नज़र आता है,है नज़रिया भी अच्छा, सब कुछ अच्छा नज़र आता…
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दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है
दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है अपनी कलम से, हो सोच अगर अच्छी, तो सब खुबसूरत नज़र आता है,है नज़रिया भी अच्छा, सब कुछ अच्छा नज़र आता…
आजकल की शादी – है सरकार के नोटों की तरह
आजकल की शादियां, यूं हो गई फास्ट फूड की दुकान,ठेले जैसी निभाते रिश्ते, आज ये तो कल दूसरी दुकान! ये आजकल की शादियां सरकार के नोटों जैसी हो गई,आज साथ…
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दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है
दौर मुश्किलों का – कोई शाश्वत नहीं है अपनी कलम से, हो सोच अगर अच्छी, तो सब खुबसूरत नज़र आता है,है नज़रिया भी अच्छा, सब कुछ अच्छा नज़र आता…